पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले की पहाड़ियों के बीच एक छोटा-सा गांव है – चारिडा। दूर से देखने पर ये गांव बिल्कुल साधारण लगता है, लेकिन जैसे ही आप इसकी गलियों में कदम रखते हैं, आप एक अलग ही दुनिया में प्रवेश कर जाते हैं – एक ऐसी दुनिया, जहां हर दीवार, हर घर, हर चेहरा कला की आत्मा से रंगा हुआ है।
चारिडा को लोग प्यार से "मास्क विलेज" कहते हैं, और इसकी वजह है – यहां बनने वाले छऊ नृत्य के रंग-बिरंगे मुखौटे, जो भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं।
Purulia Chhau Dance: नृत्य, युद्ध और देवत्व की त्रिवेणी
छऊ नृत्य कोई साधारण लोकनृत्य नहीं है – ये है शौर्य, सौंदर्य और संस्कृति का अद्भुत संगम। यह नृत्य मुख्य रूप से तीन शैलियों में मिलता है:
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सरायकेला छऊ – झारखंड के सरायकेला से
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मयूरभंज छऊ – ओडिशा के मयूरभंज से
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पुरुलिया छऊ – पश्चिम बंगाल के पुरुलिया से
इनमें से पुरुलिया छऊ अपने भव्य मुखौटों, शक्तिशाली शारीरिक मुद्राओं और धार्मिक कथानकों के लिए जाना जाता है।
Chhau Dance का इतिहास – परंपरा से विरासत तक
छऊ नृत्य का इतिहास सदियों पुराना है। माना जाता है कि यह नृत्य महाभारत और रामायण के युद्धों, ग्रामीण जीवन और धर्मगाथाओं पर आधारित है। इसकी जड़ें राजाओं के दरबार, सैनिक अभ्यास, और ग्राम्य उत्सवों में मिलती हैं।
पुराने समय में छऊ नृत्य को योद्धा वर्ग द्वारा अभ्यास किया जाता था ताकि वे शारीरिक रूप से सक्षम रहें और साथ ही अपने देवताओं को प्रसन्न कर सकें। बाद में यह नृत्य ग्रामीण मेलों और धार्मिक आयोजनों का हिस्सा बन गया।
'छऊ' शब्द की उत्पत्ति के विषय में दो प्रमुख मत हैं:
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यह शब्द संस्कृत के "छाया" से लिया गया है, जिसका अर्थ है – छवि या रूप
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एक अन्य मत यह है कि यह शब्द ओडिया भाषा के "छा" (नकाब) से आया है, जो नृत्य के मुखौटे को दर्शाता है
Charida – जहां हर हाथ में कला है, हर दिल में संस्कृति
चारिडा गांव लगभग 200 परिवारों का घर है, जिनमें से ज़्यादातर लोग सुतार या शिल्पकार समुदाय से हैं। यहां पीढ़ियों से छऊ नृत्य में प्रयोग होने वाले मुखौटे बनाए जाते हैं – वो भी हाथ से, पूरी श्रद्धा और लगन से।
एक मास्क बनने में कई चरण होते हैं –
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मिट्टी और कागज से ढांचा बनाना
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सुखाना और प्लास्टर करना
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रंगों और सजावटी सामान से उसे सजाना
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अंत में, उसमें प्राण फूंकना – एक चरित्र को जीवंत करना
हर मुखौटा सिर्फ एक शिल्प नहीं, बल्कि एक देवी या देवता का रूप होता है, जिसे पहनकर नर्तक मंच पर उतरता है।
Charida में पर्यटन – कला से जुड़ने का मौका
आज चारिडा सिर्फ एक गांव नहीं, बल्कि एक जीवंत संग्रहालय बन चुका है। यहां आने वाले पर्यटक:
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स्थानीय कारीगरों से मुखौटा बनाना सीखते हैं
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छऊ नर्तकों से उनकी तैयारी और रिहर्सल देखते हैं
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गांव की गलियों में बसी कला को कैमरे में नहीं, दिल में कैद करते हैं
यहां कई ऐसे कलाकार हैं जिन्होंने राष्ट्रपति पुरस्कार, राष्ट्रीय सम्मान, और अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों में हिस्सा लिया है।
सम्मान और पहचान
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Purulia Chhau Mask को Geographical Indication (GI Tag) प्राप्त है
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UNESCO ने छऊ नृत्य को Intangible Cultural Heritage of Humanity के रूप में मान्यता दी है
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सरकार और कई संस्थाएं इस कला के संरक्षण और प्रचार-प्रसार में सक्रिय हैं
एक भावनात्मक जुड़ाव – Charida की सीख
चारिडा सिर्फ शिल्प नहीं सिखाता, यह हमें सिखाता है कि जब परंपरा, श्रम और श्रद्धा एक साथ मिलते हैं, तो वह सिर्फ कला नहीं, बल्कि पूजा का रूप बन जाती है।
यह गांव हमें याद दिलाता है कि भारत की असली खूबसूरती उसकी मिट्टी, उसके लोग, और उनकी संस्कृति में है।