"पति की सेवा में ही मेवा है, और भोलेनाथ ही मेरा सहारा हैं," — कहते हुए आशा की आँखों में दृढ़ निश्चय और भक्ति की झलक साफ दिखती है।
श्रावण मास की पावन कांवड़ यात्रा इस बार सिर्फ भक्ति की नहीं, बल्कि त्याग, प्रेम और अटूट समर्पण की एक मिसाल बन गई है। उत्तर प्रदेश के मोदीनगर की रहने वाली आशा अपने बीमार पति सचिन को पीठ पर बैठाकर हरिद्वार से मोदीनगर तक की 170 किलोमीटर लंबी पदयात्रा पर निकली हैं।
सावन के इस धार्मिक उत्सव में लाखों श्रद्धालु गंगाजल लेने निकलते हैं, लेकिन इस बार लोगों की आंखें नम तब हो गईं जब मुज़फ्फरनगर के शिव चौक पर यह अद्भुत जोड़ी पहुंची — पत्नी अपने पति को कंधे पर उठाए हुए, और साथ में दो मासूम बच्चे, जो इस यात्रा के जीवंत गवाह हैं।
बीमार पति, लेकिन आस्था नहीं टूटी
सचिन पहले खुद कांवड़ यात्रा किया करते थे। उन्होंने बताया,
"अब तक 13 बार मैंने भोलेनाथ के दर्शन पैदल जाकर किए हैं, लेकिन इस बार शरीर ने जवाब दे दिया। तब मेरी पत्नी ने कहा – 'अगर तुम नहीं चल सकते, तो मैं तुम्हें लेकर चलूंगी।'"
हरिद्वार की हर की पैड़ी से लेकर दक्षेश्वर महादेव मंदिर तक आशा ने अपने पति को पीठ पर उठाकर गंगास्नान भी करवाया और शिवजी के दर्शन भी कराए।
"पति धर्म ही मेरा व्रत है" – आशा
आशा का कहना है,
"मैंने बस यही मन्नत मांगी है कि मेरे पति जल्दी ठीक हो जाएं। यह कोई महान काम नहीं, यह तो मेरा धर्म है।"
उनकी सादगी में छिपा समर्पण लोगों को भावुक कर रहा है। राहगीरों ने उन्हें खाना, पानी और विश्राम के लिए स्थान भी दिया।
सावित्री नहीं, आज की सच्ची शक्ति
स्थानीय लोगों का कहना है कि यह सिर्फ आस्था नहीं, बल्कि संघर्ष और प्रेम की एक मिसाल है।
"यह महिला हमें सिखा रही है कि आज भी निःस्वार्थ प्रेम और सेवा का अस्तित्व है," – ऐसा कहना है वहां मौजूद एक श्रद्धालु का।
कांवड़ नहीं, रिश्तों की डोर है ये यात्रा
यह कांवड़ यात्रा अब सिर्फ शिवभक्ति की नहीं रही। यह मानवता, रिश्तों और स्त्री शक्ति का उत्सव बन चुकी है। सोशल मीडिया पर भी आशा की यह तस्वीरें वायरल हो रही हैं और लोग उन्हें ‘कलयुग की सावित्री’ कहकर सम्मान दे रहे हैं।