मुंबई, 21 जुलाई 2025 —
2006 में मुंबई की लोकल ट्रेनों में हुए श्रृंखलाबद्ध बम धमाकों के मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोमवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए 12 में से 11 आरोपियों को बरी कर दिया। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष पर्याप्त और विश्वसनीय सबूत पेश करने में असफल रहा, जिससे संदेह का लाभ आरोपियों को मिला।
बरी किए गए आरोपियों ने लगभग दो दशकों तक जेल में वक्त बिताया — कुछ ने 17 साल, कुछ ने उससे भी अधिक। हाई कोर्ट ने माना कि जिन बयानों और सबूतों के आधार पर निचली अदालत ने सजा सुनाई थी, वे कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं थे।
क्या हुआ था 2006 में?
11 जुलाई 2006 को मुंबई की भीड़भाड़ वाली लोकल ट्रेनों में मात्र 11 मिनट के भीतर 7 बम धमाके हुए थे। इस भयावह हमले में 209 लोगों की मौत हुई और 700 से अधिक घायल हुए। यह घटना देश के इतिहास में सबसे भयावह आतंकी हमलों में से एक मानी जाती है।
जांच पर उठे सवाल
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि पुलिस और जांच एजेंसियों द्वारा जिन गवाहों को प्रस्तुत किया गया, उनके बयान विरोधाभासी थे और कई सबूत अदालत में टिक नहीं सके। कोर्ट ने यह भी कहा कि कुछ आरोपियों को फंसाए जाने की आशंका को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
पीड़ित परिवारों में निराशा, आरोपियों के परिजनों ने जताई राहत
जहाँ एक ओर बरी हुए आरोपियों के परिवारों ने इस फैसले को "देर से मिला न्याय" करार दिया, वहीं पीड़ितों के परिवारों के लिए यह खबर एक और सदमा बनकर आई है।
मुंबई के माटुंगा में रहने वाली एक पीड़िता की बहन ने कहा, "हमने लगभग 20 साल तक न्याय की उम्मीद की... अब लगता है कि सब कुछ व्यर्थ चला गया।"
सरकार की अगली रणनीति पर नजर
अब यह देखना होगा कि महाराष्ट्र सरकार और एनआईए (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देती है या नहीं।
यह मामला न सिर्फ न्यायपालिका की संवेदनशीलता को उजागर करता है, बल्कि हमारे जांच तंत्र की पारदर्शिता, जवाबदेही और इंसाफ की गहराई पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है।