नई दिल्ली:
जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा में हाल ही में हुए 'ऑपरेशन सिंदूर' को लेकर राज्यसभा में गर्मागर्म बहस देखने को मिली। एक तरफ जहां कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा कि "जो आतंकी हमारे लोगों को मारकर भागे, वे आज भी फरार हैं," वहीं दूसरी ओर बीजेपी अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा ने इसे "आजादी के बाद का सबसे बड़ा और साहसी ऑपरेशन" करार दिया।
खड़गे का सवाल: जब आतंकी अब भी ज़िंदा हैं, तो ऑपरेशन पूरा कैसे हुआ?
राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने केंद्र सरकार की रणनीति पर सवाल उठाते हुए कहा –
“हमारे जवान मारे गए, आम नागरिकों की जान गई और जो आतंकी इस कायराना हमले के पीछे थे, वे अब तक नहीं पकड़े गए। तो क्या इसे हम सफल ऑपरेशन कहें? या अधूरा बदला?"
उन्होंने सरकार से यह स्पष्ट करने की मांग की कि ऑपरेशन सिंदूर के तहत आखिर कितने आतंकियों को पकड़ने या मार गिराने का लक्ष्य था, और उस लक्ष्य को कितना हासिल किया गया।
जेपी नड्डा का जवाब: सेना ने जो किया, वह ऐतिहासिक है
केंद्रीय मंत्री और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने खड़गे के सवालों का जवाब देते हुए कहा –
"देश की सुरक्षा के लिए हमारे जवानों ने जो पराक्रम दिखाया, वह आजादी के बाद किसी भी ऑपरेशन में नहीं देखा गया। ऑपरेशन सिंदूर सिर्फ सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि देश की अस्मिता की रक्षा थी।"
उन्होंने कहा कि ऑपरेशन के तहत कई आतंकी ठिकानों को तबाह किया गया, और यह पूरी तरह योजनाबद्ध कार्रवाई थी जिसमें सेना, खुफिया एजेंसियां और स्थानीय प्रशासन सभी समन्वय में थे।
क्या है ‘ऑपरेशन सिंदूर’?
'ऑपरेशन सिंदूर' नाम दिया गया उस संयुक्त कार्रवाई को जो कुपवाड़ा और आस-पास के इलाकों में आतंकियों के सफाए के लिए की गई थी। ऑपरेशन में वायुसेना की निगरानी तकनीक, सेना की स्पेशल फोर्स और खुफिया विभाग की सूचनाएं शामिल थीं। शुरुआती रिपोर्ट्स के मुताबिक, 10 से अधिक संदिग्ध ठिकानों पर रेड डाली गई, लेकिन कुछ आतंकी पहाड़ी इलाकों से फरार हो गए।
क्या ऑपरेशन अधूरा रहा? जानिए विशेषज्ञों की राय
सुरक्षा मामलों के जानकार मानते हैं कि हालांकि ऑपरेशन तकनीकी तौर पर सफल रहा, लेकिन अगर मुख्य आरोपी अब तक गिरफ्त से बाहर हैं तो इसे “पूरी तरह सफल” कहने से पहले ठहराव ज़रूरी है। विशेषज्ञ यह भी कह रहे हैं कि यह ऑपरेशन कई चरणों में हो सकता है, और अगले दौर की तैयारी में समय लग सकता है।
राजनीति बनाम सुरक्षा
जहां विपक्ष इस मुद्दे को सरकार की नाकामी के तौर पर पेश कर रहा है, वहीं सत्ता पक्ष इसे “राष्ट्रवाद और सुरक्षा नीति की बड़ी जीत” बता रहा है। सवाल ये है —
क्या केवल कार्रवाई पर्याप्त है जब तक मुख्य हमलावर पकड़ में ना आएं?
या फिर — क्या ये कार्रवाई इस दिशा में एक अहम शुरुआत मानी जाए?
‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर संसद में उठी यह बहस सिर्फ सुरक्षा नीति की नहीं, बल्कि राजनीतिक दृष्टिकोण की भी परीक्षा बन गई है। आने वाले दिनों में सरकार यदि फरार आतंकियों की गिरफ्तारी या मार गिराने की पुष्टि करती है, तो इस ऑपरेशन को पूरी सफलता कहा जा सकता है।