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नटराज प्रतिमा में शिव के पैरों के नीचे दबा बौना दानव कौन है? जानिए अप्समार की रहस्यमयी कहानी

Published on July 22, 2025 by Priti Kumari

नई दिल्ली:
क्या आपने कभी भगवान शिव की प्रसिद्ध नटराज प्रतिमा को ध्यान से देखा है? यह वही प्रतिमा है जिसमें शिव तांडव मुद्रा में दिखाई देते हैं — एक हाथ में डमरू, एक में अग्नि, और एक पांव आसमान की ओर उठा होता है, जबकि दूसरा पांव एक बौने दानव को दबा रहा होता है।

यह बौना कौन है? और भगवान शिव ने उसे क्यों दबाया है?

इस रहस्यमयी दैत्य का नाम है अप्समार, और इसके पीछे छुपी है एक गहरी दार्शनिक और आध्यात्मिक कहानी।

 अप्समार कौन है?

अप्समार (Apasmara) एक पौराणिक दानव है, जो अज्ञान, भ्रम, और अहंकार का प्रतीक माना जाता है। वह एक ऐसा राक्षस है जो इंसानी चेतना को भ्रमित करता है और आत्मज्ञान की राह में सबसे बड़ी रुकावट बनता है।

शास्त्रों के अनुसार, अप्समार का अस्तित्व तब उत्पन्न हुआ जब अज्ञान और घमंड का अंधकार पृथ्वी पर छाने लगा। उसका प्रभाव इतना बढ़ गया कि ऋषि-मुनि और देवता भी भ्रमित होने लगे।

 शिव ने उसे क्यों दबाया?

जब अप्समार का अत्याचार असहनीय हो गया, तब देवताओं ने भगवान शिव से आग्रह किया कि वे अज्ञान के इस प्रतीक को नियंत्रित करें।
तब शिव ने तांडव नृत्य करते हुए नटराज रूप धारण किया — यह नृत्य न केवल सृजन और विनाश का प्रतीक है, बल्कि आध्यात्मिक संतुलन और ज्ञान की विजय को भी दर्शाता है।

नटराज नृत्य के दौरान शिव ने अप्समार को अपने दाहिने पैर से दबा दिया, और उसे नीचे दबाकर वहीं स्थिर कर दिया। मान्यता है कि अगर अप्समार को छोड़ा जाए, तो अज्ञान और भ्रम पुनः दुनिया पर छा जाएगा।


🕉️ नटराज: प्रतीकात्मक महत्व

नटराज की प्रतिमा सिर्फ एक धार्मिक मूर्ति नहीं, बल्कि एक दर्शन है। इसमें हर तत्व का गहरा अर्थ है:

  • डमरू: सृजन की ध्वनि

  • अग्नि: विनाश की शक्ति

  • उठा हुआ पांव: मुक्ति का मार्ग

  • अप्समार पर रखा पांव: अज्ञान को दबाकर आत्मज्ञान की प्राप्ति

🌍 कहां है यह प्रतिमा?

भारत के चिदंबरम मंदिर (तमिलनाडु) में भगवान शिव की एक प्रसिद्ध नटराज प्रतिमा स्थापित है, जहां इस रूप की पूजा की जाती है।
इसके अलावा, स्विट्जरलैंड की CERN प्रयोगशाला में भी शिव की नटराज मूर्ति लगी है — यह विज्ञान और अध्यात्म के मेल का प्रतीक मानी जाती है।

अप्समार, नटराज प्रतिमा में दबा बौना दानव, केवल एक पौराणिक पात्र नहीं है, बल्कि वह हमारे भीतर मौजूद अज्ञान और भ्रम का प्रतीक है।
भगवान शिव का यह रूप हमें यह सिखाता है कि ज्ञान प्राप्ति के लिए पहले हमें अपने अंदर के अप्समार को दबाना जरूरी है

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