अमेरिकी सीनेटर और डोनाल्ड ट्रंप के करीबी माने जाने वाले लिंडसे ग्राहम ने भारत, चीन और ब्राजील को रूस से तेल खरीदने को लेकर खुली चुनौती दी है। ग्राहम ने चेतावनी दी है कि अगर इन देशों ने रूस से तेल आयात जारी रखा, तो अमेरिका की ओर से भारी टैरिफ (शुल्क) लगाया जाएगा।
लिंडसे ग्राहम का यह बयान ऐसे समय पर आया है जब अमेरिका, रूस पर यूक्रेन युद्ध को लेकर वैश्विक दबाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। हालांकि, भारत सहित कई देश रूस से सस्ते दरों पर तेल खरीद कर अपने घरेलू बाजार को स्थिर बनाए रखने की रणनीति अपना रहे हैं।
🇮🇳 भारत की स्थिति: ऊर्जा सुरक्षा बनाम वैश्विक दबाव
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की ऊंची कीमतों के बीच रूस से मिलने वाला छूट वाला कच्चा तेल, भारत की महंगाई नियंत्रित नीति और आर्थिक स्थिरता के लिए बेहद अहम है। ऐसे में अमेरिकी दबाव भारत के लिए एक कूटनीतिक चुनौती बन सकता है।
भारत ने पहले भी किया है संतुलन
भारत पहले भी रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान कई बार स्पष्ट कर चुका है कि उसकी विदेश नीति "राष्ट्रहित सर्वोपरि" के सिद्धांत पर आधारित है। भारत ने संयुक्त राष्ट्र में रूस के खिलाफ वोटिंग से परहेज़ करते हुए निरपेक्षता की नीति अपनाई थी।
अमेरिका-भारत संबंधों पर असर?
विश्लेषकों का मानना है कि लिंडसे ग्राहम का यह बयान व्यक्तिगत हो सकता है, लेकिन अगर यह अमेरिका की आधिकारिक नीति का हिस्सा बनता है, तो भारत और अमेरिका के बीच कूटनीतिक खिंचाव पैदा हो सकता है। हालांकि, दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी, रक्षा सहयोग और व्यापार संबंध काफी मजबूत हैं।
भारत को क्या करना चाहिए?
भारत को इस मुद्दे पर संतुलित कूटनीति का पालन करना होगा। विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत को अमेरिका से संवाद बनाए रखते हुए अपने ऊर्जा हितों की रक्षा करनी चाहिए। भारत के पास फिलहाल रूस से तेल खरीद जारी रखने के लिए पर्याप्त आर्थिक और कूटनीतिक आधार मौजूद हैं।