कभी “India Out” के नारे लगाकर चर्चा में आए मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू अब खुद को भारत के नजदीक ला रहे हैं। जिन मुइज्जू ने चुनावी रैलियों में भारतीय सैन्य कर्मियों को देश से बाहर निकालने की बात कही थी, वही अब भारत से साझेदारी बढ़ाने में जुटे हैं। आखिर ऐसा क्या बदला कि चीन के करीबी माने जाने वाले मुइज्जू अब भारत की ओर रुख कर रहे हैं?
आर्थिक संकट ने दिखाई हकीकत
मालदीव इस वक्त गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है। देश पर GDP से भी ज्यादा (करीब 110%) कर्ज़ है और विदेशी मुद्रा भंडार भी खतरे में है। ऐसे हालात में राष्ट्रपति मुइज्जू को एहसास हुआ कि केवल चीन पर निर्भर रहना काफी नहीं है।
चीन से नहीं मिली उतनी मदद
मुइज्जू ने चीन के साथ कई बड़े समझौते किए — 2024 में बीजिंग दौरे के दौरान करीब 20 करार हुए। लेकिन जमीन पर निवेश और राहत वो नहीं मिली, जिसकी उन्हें उम्मीद थी। चीन ने वादे तो किए, लेकिन मौजूदा हालात में मालदीव को तुरंत मदद चाहिए थी।
भारत ने बढ़ाया मदद का हाथ
भारत ने मालदीव की डूबती अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए न सिर्फ कर्ज़ राहत दी, बल्कि कई परियोजनाओं के लिए आर्थिक सहयोग भी दिया। भारत ने करीब $565 मिलियन (लगभग ₹4,700 करोड़) की मदद से पुल, बंदरगाह और इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में निवेश किया। इसके अलावा, दोनों देशों के बीच फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) पर भी बातचीत शुरू हो चुकी है।
मोदी की यात्रा ने बदले समीकरण
25 जुलाई 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी माले पहुंचे। ये दौरा प्रतीक था कि भारत और मालदीव रिश्ते सुधारने की ओर बढ़ चुके हैं। राष्ट्रपति मुइज्जू ने खुद प्रधानमंत्री मोदी का गर्मजोशी से स्वागत किया और दोनों देशों ने साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस में सहयोग बढ़ाने की प्रतिबद्धता जताई।
‘संतुलन’ की रणनीति
मुइज्जू अब चीन और भारत दोनों के साथ रिश्तों को संतुलित करने की नीति पर चल रहे हैं। उनका मकसद है – भारत की मदद से अर्थव्यवस्था को स्थिर करना और चीन से रणनीतिक रिश्ते बनाए रखना। उन्होंने यह भी साफ किया कि अब मालदीव में न भारतीय सैनिक हैं, न चीनी सैनिकों की कोई योजना है।
मोहम्मद मुइज्जू की राजनीति भले ही चीन की ओर झुकी रही हो, लेकिन जमीनी हालात ने उन्हें भारत की अहमियत समझा दी है। आर्थिक जरूरतों और कूटनीतिक संतुलन की खोज ने उन्हें “India Out” से “India In” की राह पर ला दिया है। ये बदलाव सिर्फ एक नेता का नहीं, बल्कि हिंद महासागर क्षेत्र में बदलती भू-राजनीति का संकेत है।