गुरुवार को सरकार ने ‘वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024’ को लोकसभा में पेश किया और इसे संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजने का प्रस्ताव किया। इसके बाद, वक्फ संपत्ति विधेयक को राज्यसभा से वापस ले लिया गया। केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरेन रिजीजू ने इस विधेयक को पूर्व कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में बनी सच्चर कमेटी की सिफारिशों के आधार पर तैयार किया गया बताया और कहा कि इसका उद्देश्य वक्फ बोर्डों में पारदर्शिता लाना और मुसलिम महिलाओं और बच्चों के अधिकारों को सुनिश्चित करना है।
प्रस्तावित बदलाव:
- धनराशि का उपयोग: वक्फ बोर्डों से प्राप्त धनराशि का उपयोग केवल मुसलिम समुदाय पर ही किया जाएगा।
- महिलाओं और बच्चों के अधिकार: विधेयक बच्चों और महिलाओं को अधिक अधिकार देने का प्रस्ताव करता है।
- जिला अधिकारियों की शक्तियों में वृद्धि: विधेयक जिला अधिकारियों (राजस्व अधिकारियों) की शक्तियों को बढ़ाएगा।
- मामलों की तेजी से सुनवाई: बोर्ड और ट्रिब्यूनल में लंबित मामलों के निपटारे में तेजी लाने का प्रावधान है। अपील की प्रक्रिया 90 दिन में पूरी की जाएगी और मामलों का निपटारा छह महीने में होगा।
- पारदर्शिता: तकनीक का उपयोग बढ़ाकर वक्फ बोर्ड में पारदर्शिता सुनिश्चित की जाएगी।
- महिलाओं की उपस्थिति: बोर्ड में दो महिलाओं की उपस्थिति अनिवार्य होगी।
विपक्षी दलों की प्रतिक्रिया: विपक्षी दलों ने विधेयक के लोकसभा में पेश किए जाने पर तीव्र आपत्ति जताई। उनका कहना है कि यह विधेयक संविधान और संघवाद पर हमला है और अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव को बढ़ावा देगा। कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल ने इसे संविधान पर हमला बताया और पूछा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश से अयोध्या में मंदिर बोर्ड का गठन कैसे किया जा सकता है, लेकिन वक्फ परिषद में गैर-मुसलिम सदस्य की बात क्यों की जा रही है। उन्होंने इसे आस्था और धर्म के अधिकार पर हमला करार दिया और आरोप लगाया कि यह विधेयक चुनावी राजनीति के तहत लाया गया है।
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने विधेयक को सोची-समझी राजनीति का हिस्सा बताया और आरोप लगाया कि इसमें जिला अधिकारियों को अत्यधिक शक्ति दी गई है, जिसे उन्होंने एक चिंताजनक मुद्दा बताया।
समर्थन: राजग के घटक दलों, जनता दल (एकी) और तेलगुदेसम पार्टी (तेदेपा) ने विधेयक का समर्थन किया, यह कहते हुए कि इससे वक्फ से जुड़ी संस्थाओं में पारदर्शिता सुनिश्चित होगी। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि सभी दलों के नेताओं से चर्चा करके संयुक्त संसदीय समिति का गठन किया जाएगा।
इस विधेयक की पेशकश और उसके प्रस्तावित बदलावों को लेकर विभिन्न दलों और नेताओं के बीच मतभेद स्पष्ट हैं, और इसके प्रभाव पर व्यापक चर्चा जारी है।