बजट में होता है तीन तरह के घाटे का ब्योरा

बजट में तीन तरह घाटे का जिक्र किया जाता है. आइए, जानते हैं इन तीन तरह के घाटे को.

राजकोषीय घाटा

सरकार की कुल आमदनी और खर्च में अंतर को ही राजकोषीय घाटा कहा जाता है. जब कोई सरकार अपने बजट में आय से अधिक खर्च दिखाती है, तो इसे घाटे का बजट कहते हैं. राजकोषीय घाटा आमतौर पर राजस्व में कमी या पूंजीगत खर्च में अत्यधिक वृद्धि के कारण होता है. राजकोषीय घाटे की भरपाई आमतौर पर केंद्रीय बैंक (रिजर्व बैंक) से उधार लेकर की जाती है या इसके लिए छोटी और लंबी अवधि के बॉन्ड के जरिये पूंजी बाजार से फंड जुटायी जाती है. राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है. वित्त मंत्रालय प्रत्येक वर्ष बजट में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य तय करती है.

प्राथमिक घाटा

राजकोषीय घाटा में सरकार द्वारा पूर्व में लिये गये कर्ज पर किये जानेवाले भुगतान को घटाने के बाद प्राथमिक घाटा प्राप्त होता है. सरकार की ओर से लिया जानेवाला कर्ज और पुराने कर्ज पर चुकाया जानेवाला ब्याज राजकोषीय घाटे में शामिल होता है. प्राथमिक घाटे में पुराने कर्ज पर चुकाने वाले इंट्रेस्ट को नहीं जोड़ा जाता है.

राजस्व घाटा

सरकार हर साल अपनी कमाई का लक्ष्य तय करती है. कमाई अगर उम्मीद से कम हुई, तो इसे रेवेन्यू डेफिसिट यानी राजस्व घाटा कहते हैं. रेवेन्यू डेफिसिट का मतलब है कि सरकार ने वित्त वर्ष के दौरान ज्यादा तेजी से खर्च किया. दूसरे शब्दों में कहें तो, सरकार ने जरूरी खर्च के लिए न्यूनतम कमाई नहीं की. विनिवेश यानी निजीकरण या उधार लेने का निर्णय बहुत हद तक रेवेन्यू डेफिसिट पर निर्भर करता है.

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