सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता, कहा चेक बाउंस मामलों का लंबित रहना गंभीर विषय

सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी संख्या में चेक बाउंस के मामलों के लंबित होने पर गंभीर चिंता जताई है। कोर्ट ने कहा है कि यदि पक्ष समझौता करने के इच्छुक हैं तो अदालतों को परक्राम्य लिखत अधिनियम के तहत समझौता योग्य अपराधों के निपटान को प्रोत्साहित करना चाहिए। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने चेक बाउंस मामले में पी कुमारसामी नाम के एक व्यक्ति की सजा को यह देखते हुए रद्द कर दिया कि दोनों पक्षों ने समझौता कर लिया है और शिकायतकर्ता को 5.25 लाख रुपये का भुगतान किया गया है। पीठ ने 11 जुलाई के अपने आदेश में कहा, चेक बाउंस होने से जुड़े मामले बड़ी संख्या में अदालतों में लंबित हैं जो हमारी न्यायिक प्रणाली के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है। य ाह ध्यान में रखते हुए कि उपाय के ‘प्रतिपूरक पहलू’ को ‘दंडात्मक पहलू’ पर प्राथमिकता दी जाएगी, अदालतों को परक्राम्य लिखत अधिनियम के तहत अपराधों के शमन को प्रोत्साहित करना चाहिए, यदि पक्ष ऐसा करने के इच्छुक हैं। परक्राम्य लिखत अधिनियम सभी परक्राम्य लिखतों जैसे वचन पत्र, विनिमय पत्रों और चेक संबंधी मामलों के निपटान से संबंधित है। समझौता योग्य अपराध वे होते हैं जिनमें प्रतिद्वंद्वी पक्षों द्वारा समझौता किया जा सकता है। पीठ ने कहा कि यह याद रखना होगा कि चेक का बाउंस होना एक नियामक अपराध है जिसे केवल सार्वजनिक हित को देखते हुए अपराध की श्रेणी में लाया गया है ताकि संबंधित नियमों की विश्वसनीयता सुनिश्चित की जा सके। पीठ ने अपने आदेश में कहा, परिस्थितियों की समग्रता और पक्षों के बीच समझौते पर विचार करते हुए, हम इस अपील को स्वीकार करते हैं तथा एक अप्रैल 2019 के लागू आदेश के साथ-साथ निचली अदालत के 16 अक्टूबर 2012 के आदेश को रद्द करके अपीलकर्ताओं को बरी करते हैं।

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