बंबई उच्च न्यायालय ने सोमवार को महाराष्ट्र सरकार की ‘लाड़ली बहन योजना’ को लाभकारी और भेदभावपूर्ण नहीं माना। मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय और न्यायमूर्ति अमित बोरकर की खंडपीठ ने नवीद अब्दुल सईद मुल्ला द्वारा दायर जनहित याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें इस योजना को रद्द करने की मांग की गई थी।
योजना की विवरण
‘मुख्यमंत्री माझी लाडकी बहिण योजना’ के तहत 21 से 65 वर्ष की उम्र की उन महिलाओं के बैंक खातों में 1,500 रुपये ट्रांसफर किए जाएंगे जिनके परिवार की आय 2.5 लाख रुपये से कम है। इस योजना का उद्देश्य आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की महिलाओं को समर्थन प्रदान करना है।
अदालत की टिप्पणी
पीठ ने कहा कि यह नीतिगत निर्णय है और इसे ‘न्यायिक समीक्षा’ के दायरे से बाहर रखा गया है। अदालत ने टिप्पणी की कि सरकार की योजनाओं की प्राथमिकताएं तय करना न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। उच्च न्यायालय ने कहा कि योजना का उद्देश्य सामाजिक कल्याण है और यह योजना किसी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं करती।
याचिकाकर्ता की आपत्ति
याचिकाकर्ता के वकील ओवैस पेचकर ने तर्क किया कि यह योजना करदाताओं के धन का गलत उपयोग है और इसे राजनीतिक लाभ के लिए शुरू किया गया है। हालांकि, उच्च न्यायालय ने कहा कि सरकार के निर्णयों में न्यायालय हस्तक्षेप नहीं कर सकती और योजनाओं की प्राथमिकताओं को तय करने का अधिकार भी न्यायालय के पास नहीं है।
भेदभाव के आरोप
पेचकर ने आरोप लगाया कि यह योजना भेदभावपूर्ण है क्योंकि केवल उन महिलाओं को लाभ मिल रहा है जिनकी आय 2.5 लाख रुपये से कम है। इस पर, न्यायालय ने कहा कि समानता की मांग केवल समान परिस्थितियों वाले लोगों के बीच की जा सकती है। अदालत ने कहा कि यह योजना भले ही कुछ महिलाओं के लिए लाभकारी है, लेकिन यह भेदभावपूर्ण नहीं है।
अदालत का निर्णय
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि योजना का बजटीय आवंटन विधायिका द्वारा किया गया है और इसमें हस्तक्षेप करने का न्यायालय का कोई अधिकार नहीं है। मुख्य न्यायाधीश उपाध्याय ने टिप्पणी की कि सरकार के निर्णय राजनीतिक होते हैं और न्यायालय को इन निर्णयों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
अदालत ने याचिकाकर्ता पर कोई जुर्माना नहीं लगाया, लेकिन उनकी दलीलों को अस्वीकार कर दिया, यह संकेत देते हुए कि ‘लाड़ली बहन योजना’ की वैधता और लाभप्रदता को लेकर कोई न्यायिक हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।