सुप्रीम कोर्ट ने बीस साल से नागरिकता पाने की कानूनी लड़ाई लड़ रहे असम के मोहम्मद रहीम अली के पक्ष में फैसला सुनाया है। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने उनकी नागरिकता ही बहाल नहीं की बल्कि विदेशी न्यायाधिकरण की कार्यशैली पर भी सवाल उठाए हैं। दरअसल 19 मार्च 2012 को असम में विदेशी न्यायाधिकरण ने मोहम्मद रहीम अली को विदेशी नागरिक करार दिया था। बाद में गुवाहाटी हाईकोर्ट ने भी इसकी पुष्टि की थी। गुवाहाटी हाईकोर्ट के फैसले से निराश मोहम्मद रहीम अली ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। जिस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसे न्याय की असफलता करार दिया। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि विदेशी अधिनियम की धारा नौ किसी भी अधिकारी को यह अधिकार नहीं देती है कि वह किसी भी व्यक्ति के दरवाजे को खटखटाए और उन्हें उठाकर कहे कि हमें शक है कि आप विदेशी नागरिक हैं और फिर उसे कानूनी रूप से विदेशी नागरिक घोषित कर दे। सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि इस मामले हुई गलती की वजह से इस तरह के अन्य मामलों पर भी इसका असर पड़ेगा। जहां असम में और भी लोगों की नागरिकता को लेकर जांच चल रही है। कोर्ट ने मामले में ये सवाल भी उठाए कि 2004 में जब मोहम्मद रहीम अली की नागरिकता पर सवाल उठाया गया था तो उसका आधार क्या था ? अदालत ने अपने फैसले में यह भी कहा कि मामले की जांच कर रहे अधिकारियों के पास यह संदेह करने के लिए कोई भौतिक आधार या जानकारी होनी चाहिए कि कोई व्यक्ति भारतीय नहीं, बल्कि विदेशी नागरिक है। अपीलकर्ता के खिलाफ कोई भी सबूत रिकार्ड पर नहीं आया है। सिवाय इस बेबुनियाद आरोप के कि वह 25 मार्च 1971 के बाद अवैध रूप से भारत में आया था। यह भी नहीं पता कि ये आरोप किसने लगाया या पुलिस को किसने ये जानकारी दी है। इसका खुलासा भी नहीं हुआ है।