कई बार परिचतों और रिश्तेदारों से हमारे रिश्ते इसलिए सहज नहीं रह पाते हैं क्योंकि रिश्ते निभाने की अपेक्षा उनके माध्यम से अपने काम निकलवाने में हमारा ध्यान ज्यादा केन्द्रित रहता है। कुछ लोग तो पूरी जिंदगी यह ही सोचते रहते हैं कि परिचितों और रिश्तेदारों से कैसे अपना काम निकलवाया जाए। उनके सामने अपनी मजबूरियां बताकर हम अपना स्वार्थ साधना चाहते हैं। दूसरों के सामने लगातार अपनी परिस्थितियों का जिक्र कर यह दिखाना चाहते हैं कि हम अपनी जिंदगी में कितना संघर्ष कर रहे हैं। हम यह दर्शाना चाहते हैं कि जैसे जिंदगी में केवल हम ही संघर्ष कर रहे हैं, जैसे दूसरे लोगों की जिंदगी में तो कोई संघर्ष ही नहीं है। जबकि ऐसा नहीं होता है। हर इंसान के संघर्ष अलग होते हैं। दुनिया में ऐसे बहुत कम लोग है, जिनकी जिंदगी में कोई संघर्ष ही न हो। कटु सत्य तो यह है कि हर इंसान दूसरे के संघर्ष को कम करके आंकता है। दूसरे के संघर्ष को कम आंकने का भाव ही हमें एकपक्षीय बना देता है। जिंदगी एकपक्षीय होकर नहीं चलती है। दूसरे इंसान के पक्ष को समझकर ही कोई सार्थक संवाद हो सकता है। हम अपने स्वार्थ के वशीभूत होकर दूसरे इंसान का पक्ष समझना नहीं चाहते हैं। निश्चित रूप से दुख-सुख में परिचित और रिश्तेदार ही काम आते हैं। इसलिए उनके माध्यम से अपना काम कराने में कोई समस्या नहीं है लेकिन समस्या तब पैदा होती है जब हम उन्हें केवल काम पड़ने पर ही याद करते हैं। दरअसल जब भी हम दूसरे इंसान से अपना काम कराने की कोशिश रहा है तो इसका अर्थ यह नहीं है कि वह हमारा दुश्मन हो गया है। करते हैं तो उसके सामने अपने संघर्षों का पिटारा खोलकर रख देते हैं। हमें लगता है कि हमारे संघर्षों के बारे में सुनकर उसका दिल पसीज जाएगा और वह हमारा काम आसानी से कर देगा। ये तथाकथित संघर्ष वास्तविक भी हो सकते हैं और नकली भी। नकली इसलिए कि कभी कभी हम रोजमर्रा के कामों को भी अपने संघर्षों में गिन लेते हैं। जीवन में हमारी कुछ जिम्मेदारियां होती हैं। अगर हम अपनी जिम्मेदारियों को भी अपना संघर्ष मानते हैं तो इसका अर्थ यह है कि हम जिंदगी को समझ नहीं पाए हैं। यह जरूर है कि जिम्मेदारियों को पूर्ण करने के लिए की गई कोशिशों में संघर्ष जरूर होता है। आवश्यकता इस बात की है कि हम केवल अपने संघर्ष की ही रट न लगाएं बल्कि दूसरे इंसान के संघर्ष को भी देखने की कोशिश करें। जिस इंसान से हम अपना काम कराना चाह रहे हैं, उस इंसान के संघर्ष को भी जब देखेंगे तो हम उसकी असली परिस्थिति भी जान पाएंगे। तभी हमें सच्चे अर्थों में यह पता चल पाएगा कि वह हमारा काम क्यों नहीं कर पा रहा है। कई बार दूसरा इंसान हमारा काम करना चाहता है लेकिन उसकी परिस्थिति ऐसी होती है कि वह काम नहीं कर पाता है। अगर कोई इंसान हमारा काम नहीं कर पा समस्या तब होती है। जब हम उसे अपना दुश्मन मानने लगते हैं। दरअसल इंसान रिश्तों को समझने के बड़े-बड़े बड़े-बड़े दावे करता है लेकिन रिश्तों को समझना इतना आसान नहीं है। सवाल यह है कि जो लोग रिश्तों को समझने का दावा करते हैं, क्या वे वास्तव में रिश्तों को समझ पाते हैं? रिश्ते बनाए रखने के लिए समर्पण की जरूरत होती है। समर्पण एकपक्षीय नहीं होना चाहिए। दोनों ही तरफ से समर्पण होना चाहिए। जब दोनों तरफ से समर्पण होगा तो हम केवल मतलब के लिए रिश्ता नहीं बनाएंगे। कुछ लोगों की यह आदत होती है कि वे सिर्फ मतलब के लिए ही रिश्ते बनाते हैं। जब तक हम किसी के काम आते रहते हैं तब तक रिश्ता कायम रहता है। लेकिन जब हम किसी के काम आना बंद हो जाते हैं तो रिश्ता खत्म हो जाता है। यही कारण है कि जब तक हम किसी इंसान के काम करते रहते हैं, हमें अच्छाई मिलती रहती है। लेकिन जैसे ही किसी कारण उसका काम करना बंद कर देते हैं, हमें बुराई मिलनी शुरू हो जाती हैं और हमारे द्वारा किए गए पिछले काम भी बेकार हो जाते हैं। शायद भविष्य में रिश्ते-नातों के बीच भरोसा और कम होगा। मतलब की इस दुनिया में हमारे रिश्ते-नाते कितने सच्चे हैं, यह समझना बहुत जरूरी है।
जीवन जगत दरअसल जब भी हम दूसरे इंसान से अपना काम कराने की कोशिश करते हैं तो उसके सामने अपने संघर्षों का पिटारा खोलकर रख देते हैं। हमें लगता है कि हमारे संघर्षों के बारे में सुनकर उसका दिल पसीज जाएगा और वह हमारा काम आसानी से कर देगा।
आवश्यकता इस बात की है कि हम केवल अपने संघर्ष की ही रट न लगाएं बल्कि दूसरे इंसान के संघर्ष को भी देखने की कोशिश करें। जिस इंसान से हम अपना काम कराना चाह रहे हैं, उस इंसान के संघर्ष को भी जब देखेंगे तो हम उसकी असली परिस्थिति भी जान पाएंगे।