स्वतंत्रता दिवस पर निबंध: 15 अगस्त 1947

Essay on Independence Day: 15 August 1947
Essay on Independence Day: 15 August 1947

15 अगस्त 1947 का दिन भारतीय इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण दिन है। इसी दिन, भारत ने 200 वर्षों की ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति प्राप्त की और एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में उभरा। यह दिन हर भारतीय के जीवन में विशेष महत्व रखता है और हर साल बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस साल हम भारत की स्वतंत्रता के 78वें वर्ष को उत्सव के साथ मना रहे हैं, जो हमारे देश की एकता, समर्पण और बलिदान का प्रतीक है।

स्वतंत्रता दिवस का महत्व केवल स्वतंत्रता प्राप्ति तक सीमित नहीं है। यह दिन हमें उन महान स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि देने का अवसर भी प्रदान करता है जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी स्वतंत्रता की राह में बलिदान कर दी। महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, मंगल पांडे, राजगुरु, सुखदेव, जवाहरलाल नेहरू, लाला लाजपत राय, और बाल गंगाधर तिलक जैसे क्रांतिकारियों ने अपने बलिदान से हमें स्वतंत्रता की सौगात दी। इन सभी के संघर्ष और त्याग के कारण ही भारत आज स्वतंत्र है।

स्वतंत्रता दिवस पर देशभर में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। दिल्ली के लाल किले पर मुख्य समारोह आयोजित होता है, जहां प्रधानमंत्री तिरंगा फहराते हैं और देशवासियों को संबोधित करते हैं। इस अवसर पर 31 तोपों की सलामी दी जाती है और सेना की टुकड़ियां प्रधानमंत्री को सलामी देती हैं। प्रधानमंत्री अपने भाषण में देश की उपलब्धियों और भावी योजनाओं के बारे में बताते हैं, और यह सुनिश्चित करते हैं कि सभी देशवासियों को राष्ट्रीय गर्व और एकता का अनुभव हो।

आजादी के 76 वर्षों में भारत ने कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं, जैसे कि परमाणु शक्ति, चंद्रयान-3 की सफलता, और कोविड-19 वैक्सीन निर्माण। भारत का डंका विज्ञान, तकनीक, खेल, कला, और संस्कृति के क्षेत्र में पूरी दुनिया में गूंज रहा है। हालांकि, अभी भी हमें कई चुनौतियों का सामना करना है। हमें लैंगिक और सामाजिक समानता, न्याय, और विकास के मामले में बहुत कुछ हासिल करना है। हमें आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य की ओर बढ़ना है और समाज की हर जाति और वर्ग के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने हैं।

स्वतंत्रता दिवस हमें यह प्रेरणा देता है कि हम राष्ट्र निर्माण, देश के विकास और सुरक्षा के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझें और निभाएं। यह दिन हमें गांधीजी के सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों को अपनाने की प्रेरणा भी देता है।

अल्लामा इकबाल की प्रसिद्ध पंक्तियों के साथ इस निबंध को समाप्त करते हुए:

यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रूमा सब मिट गए जहाँ से,
अब तक मगर है बाक़ी नाम-व-निशाँ हमारा।
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी,
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा।
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा,
हम बुलबुलें हैं इसकी यह गुलसिताँ हमारा।

जय हिंद! जय भारत!

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