कैल्शियम और विटामिन D3 सप्लीमेंट्स, मधुमेह रोधी गोलियाँ और उच्च रक्तचाप की दवाइयाँ सहित 50 से अधिक दवाइयाँ भारत के औषधि नियामक द्वारा गुणवत्ता परीक्षण में विफल हुई हैं। ऐसे में मिर्जा गालिब का एक शेर याद आता है, ‘दिल-ए-नादां तुझे हुआ क्या है, आखिर इस दर्द की दवा क्या है?’ लेकिन अगर गालिब आज के हालात पर लिखते, तो वो कहते, ‘इस देश को हुआ क्या है, आखिर इस मिलावट की दवा क्या है?’
कारण, देश में दूध, घी, मक्खन, तेल, मसाले, जूस, सब्जियों और मिठाइयों में मिलावट के बाद अब असली दवाइयों में भी मिलावट हो गई है। हैरानी की बात ये है कि जिन कंपनियों की दवाइयाँ फेल हुई हैं, उनमें से कई ने राजनीतिक दलों को करोड़ों का चंदा बॉन्ड के माध्यम से दिया था।
रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि देश में जो लोग बड़े स्तर पर Paracetamol, PAN-D, PANTOCID और TELMA-H जैसी ब्रांडेड दवाइयाँ खाते हैं, वो भी क्वालिटी टेस्ट में फेल हो गई हैं। दरअसल, केंद्र सरकार की ड्रग रेगुलेटरी संस्था CDSCO ने ताजा रिपोर्ट जारी की है।
यह रिपोर्ट दो भागों में प्रकाशित हुई है। पहली रिपोर्ट में 48 दवाइयों के नाम हैं और दूसरी रिपोर्ट में 5 दवाइयों के नाम हैं। दूसरी रिपोर्ट इस लिए अलग से जारी की गई है क्योंकि इन दवाइयों को बनाने वाली कंपनियों का कहना है कि इस संस्था ने जिस बैच की दवाइयों की जांच की, वो नकली हैं और इन कंपनियों ने इन दवाइयों को नहीं बनाया है।
नकली दवाइयों का खुलासा:
इससे यह पता चलता है कि सरकार की नाक के नीचे बाजारों में ब्रांडेड दवाइयों के नाम से नकली दवाइयाँ भी बेची जा रही हैं। इनमें जिन पांच नकली दवाइयों का इस रिपोर्ट में पता चला है, उनमें पहली दवाई का नाम Pantocid है, जो पेट में गैस, जलन और Acidity होने पर खाई जाती है। भारत के लोग हर साल एसिडिटी के लिए 2,500 करोड़ गोलियाँ खाते हैं, और इनमें Pantocid सबसे ज्यादा खाई जाती है।
दूसरी नकली दवाई का नाम Telma-H है, जिसे हाई ब्लड प्रेशर की समस्या वाले लोग खा रहे हैं। यह दवाई हिमाचल प्रदेश की एक फार्मा कंपनी Glenmark Pharmaceuticals द्वारा बनाई जाती है, लेकिन रिपोर्ट के मुताबिक बाजार में इसी नाम की नकली दवाई बिक रही है।
तीसरी दवाई का नाम Ursocol 300 है, जो लिवर की बीमारियों के लिए उपयोग की जाती है। चौथी दवाई का नाम Defcort 6 है, जो अस्थमा, गठिया और एलर्जी की समस्याओं के लिए खाई जाती है। ये सभी दवाइयाँ भी नकली हो सकती हैं।
पांचवीं दवाई का नाम Pulmosil है, जो Sun Pharma द्वारा बनाई जाती है। इस कंपनी का कहना है कि जो दवाई फेल हुई है, वो उसके नाम से बनाई गई नकली दवाई है।
इन पांच दवाइयों के अलावा 48 दवाइयाँ ऐसी भी हैं, जो नकली नहीं हैं, बल्कि असली ब्रांडेड दवाइयाँ हैं और ये सारी दवाइयाँ गुणवत्ता के मामले में फेल हो गई हैं।
बुखार की दवाइयाँ:
इनमें पहली दवाई का नाम Paracetamol 500 MG है। बुखार होने पर यह दवाई बहुत से लोगों द्वारा ली जाती है, लेकिन अब पता चला है कि बाजार में मिलने वाली यह असली दवाई भी गुणवत्ता के मामले में खराब निकली है। पहले बुखार की एक गोली खाने से ठीक होते थे, लेकिन अब दो-तीन खुराक के बाद भी इन दवाइयों का कोई असर नहीं होता। इसका कारण यह है कि ये दवाइयाँ असली होते हुए भी गुणवत्ता के मामले में खराब हैं।
PAN-D दवाई भी इस रिपोर्ट में फेल हुई है। यह एक ब्रांडेड दवाई है, जिसे सिक्किम की एक फार्मा कंपनी Alkem Health Science बनाती है।
जिन लोगों को हाई ब्लड प्रेशर की शिकायत है, उन्होंने Telmisartan नाम की दवाई जरूर खाई होगी, लेकिन यह दवाई भी क्वालिटी टेस्ट में फेल हो गई है।
गांवों और छोटे सरकारी अस्पतालों में मरीजों को Dehydration के लिए जो ग्लूकोज़ की कुछ बोतलें दी जाती हैं, उनमें भी RL 500 इंजेक्शन असली नहीं है और यह टेस्ट में फेल हो गया है।
अन्य दवाइयाँ:
खांसी, जुकाम, निमोनिया और दूसरे संक्रमण में खाई जाने वाली मशहूर दवाई Clavam 625 भी टेस्ट में फेल हो गई है। इसके अलावा, Calcium और Vitamin D3 के लिए Shelcal नाम की दवाई भी गुणवत्ता में फेल हुई है।
डायबिटीज की दवाई Glycimet-SR-500 और Glimepiride, विटामिन B Complex और C की दवाई, एंटी-एलर्जी की दवाई Montair LC, और डिप्रेशन की दवाई Erazol भी टेस्ट में फेल हुई हैं। इनमें Metro निडाज़ोल, जो त्वचा के संक्रमण और दांतों के दर्द में उपयोग की जाती है, भी शामिल है।
महत्वपूर्ण सवाल:
बड़ा सवाल यह है कि अगर सरकार की अपनी बनाई असली दवाइयाँ भी क्वालिटी टेस्ट में फेल हो रही हैं, तो लोग किन दवाइयों पर भरोसा करें? अमेरिका और चीन के बाद दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी Pharma इंडस्ट्री भारत में है, जो लगभग 6 लाख करोड़ रुपये की है और भारत दुनिया के 200 देशों को दवाइयों की सप्लाई करता है। इस उद्योग में भरोसा बहुत ज़रूरी होता है।
जब कोई व्यक्ति कोई दवाई खाता है, तो उसे यह पता नहीं होता कि वो दवाई कहाँ बनी है और उसमें कौन से Drug Salt इस्तेमाल हुए हैं। लोग सिर्फ सरकारों पर भरोसा रखकर डॉक्टर द्वारा लिखी गई दवाइयाँ खरीदते हैं।
चुनावी चंदा:
जिन फार्मा कंपनियों की असली दवाइयाँ गुणवत्ता टेस्ट में फेल हुईं, उनमें से किस कंपनी ने किस राजनीतिक पार्टी को कितने करोड़ के चुनावी Bonds का चंदा दिया, यह भी जानना आवश्यक है।
- TORRENT PHARMACEUTICALS: इसकी दो दवाइयाँ, Shelcal और Montair LC, क्वालिटी टेस्ट में फेल हुई हैं। इस कंपनी ने 77 करोड़ 50 लाख रुपये के चुनावी Bonds खरीदे थे, जिनमें से 61 करोड़ रुपये बीजेपी को मिले।
- ALKEM Health Science: इसने भी बीजेपी को 15 करोड़ रुपये के चुनावी Bonds दिए।
- हेटरो Labs Limited: इसने 25 करोड़ रुपये के चुनावी Bonds खरीदे, जिनमें से 20 करोड़ रुपये तेलंगाना के के. चंद्रशेखर राव की पार्टी को मिले।
- Sun Pharma: इस कंपनी ने बीजेपी को 31 करोड़ रुपये के चुनावी Bonds दिए।
इन खुलासों से स्पष्ट होता है कि जिन फार्मा कंपनियों की दवाइयों में मिलावट मिली है, उन कंपनियों ने चुनावों में बड़ी-बड़ी पार्टियों को चंदा दिया।
निष्कर्ष:
यह स्थिति गंभीर है और इससे यह सवाल उठता है कि क्या भारत की दवा गुणवत्ता में गिरावट आ रही है? अगर भारत सरकार की बनाई दवाइयाँ भी टेस्ट में फेल होती हैं, तो आम जनता को किन दवाइयों पर विश्वास करना चाहिए?