यूजीसी-नेट की दोबारा परीक्षा कराने पर रोक लगाने के लिए याचिका

यूजीसी नेट परीक्षा रद्द करने के केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। मंत्रालय ने परीक्षा की शुचिता से समझौता होने की जानकारी मिलने के बाद यह निर्णय लिया था। मंत्रालय ने 19 जून को यूजीसी नेट परीक्षा रद्द करने का आदेश दिया था और मामले की जांच सीबीआइ को सौंप दी थी। याचिका पर प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ सुनवाई करने वाली है। अधिवक्ता उज्ज्वल गौर द्वारा दायर याचिका में यूजीसी नेट परीक्षा की प्रस्तावित पुनः परीक्षा पर उस वक्त तक रोक लगाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है, जब तक कि सीबीआइ पर्चाफोड़ के आरोपों की जांच पूरी नहीं कर लेती। याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता का कहना है कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआइ) के हालिया निष्कर्षों को ध्यान में रखते हुए (पुनःपरीक्षा आयोजित करने का) यह निर्णय न केवल मनमाना है, बल्कि अन्यायपूर्ण भी है। सीबीआइ की जांच से यह तथ्य सामने आया है कि प्रश्नपत्र लीक का दावा करने वाले सबूतों के साथ छेड़छाड़ की गई है। याचिकाकर्ता ने दलील दी है कि परीक्षा को अनावश्यक रद्द करने से उन अभ्यर्थियों को काफी परेशानी हुई, जिन्होंने इस महत्त्वपूर्ण परीक्षा के लिए कड़ी मेहनत की थी। याचिका में कहा गया है कि इस निर्णय ने अनगिनत छात्रों की शैक्षणिक और पेशेवर योजनाओं को बाधित किया है, जिससे परीक्षा प्रणाली में उनका भरोसा कम हुआ है। याचिकाकर्ता ने दलील दी कि झूठे साक्ष्य के आधार पर परीक्षा रद्द करना न्याय नहीं होने के समान है। यह भारत के संविधान में निहित निष्पक्षता और समानता के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। याचिका में, न्यायालय से सीबीआइ को यूजीसी नेट परीक्षा पर्चाफोड़ आरोपों की जांच में तेजी लाने और विस्तृत रपट प्रस्तुत करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है। इस बार राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) एक ही दिन 18 जून को आयोजित की गई, जिसके लिए 11 लाख छात्रों ने पंजीकरण कराया था। यूजीसी नेट परीक्षा का आयोजन जूनियर रिसर्च फेलोशिप, सहायक प्रोफेसर के रूप में नियुक्ति और विश्वविद्यालयों व कालेजों में पीएचडी में दाखिले के लिए किया जाता है।

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