मंगलवार को उत्तर प्रदेश विधानसभा के मानसून सत्र के दूसरे दिन उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध (संशोधन) अधिनियम, 2024 पारित हो गया। संसदीय कार्य मंत्री सुरेश खन्ना ने विधेयक को पारित करने के लिए सदस्यों से अनुरोध किया। विधेयक के पक्ष में अधिक सदस्यों के समर्थन के बाद इसे पारित कर दिया गया। इस दौरान कांग्रेस विधायक दल की नेता आराधना मिश्रा ‘मोना’ और समाजवादी पार्टी (सपा) के कई सदस्यों ने इस विधेयक को प्रवर समिति को सौंपने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन प्रस्ताव गिर गया क्योंकि इसके विरोध में अधिक सदस्य थे।
इस अधिनियम में छल-कपट या जबरदस्ती कराए गए धर्मांतरण के मामलों में कानून को और अधिक सख्त बनाते हुए अधिकतम आजीवन कारावास या पांच लाख रुपए के जुर्माने की सजा का प्रावधान किया गया है। इसके तहत किसी महिला को धोखे से जाल में फंसाकर उसका धर्मांतरण करने, उससे अवैध तरीके से विवाह करने और उसका उत्पीड़न करने के दोषियों को उक्त सजा मिलेगी। पहले इसमें अधिकतम 10 साल की कैद का प्रावधान था।
सुरेश खन्ना ने विधानसभा में सोमवार को उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध (संशोधन) अधिनियम, 2024 को पुनर्स्थापित किया था। इसमें प्रस्ताव है कि यदि कोई व्यक्ति धर्मांतरण के इरादे से किसी को धमकी देता है, उस पर हमला करता है, उससे विवाह करता है या करने का वादा करता है, या इसके लिए साजिश रचता है, तो उसे गंभीर श्रेणी के अपराध में रखा जाएगा। जब यह विधेयक पहली बार पारित कर कानून बना, तब इसके तहत अधिकतम 10 साल की सजा और 50 हजार रुपए के जुर्माने का प्रावधान था। अब इसमें पीड़ित के चिकित्सकीय खर्च को पूरा करने और उसके पुनर्वास के लिए न्यायोचित और युक्तियुक्त जुर्माने का प्रावधान किया गया है।
इसके अतिरिक्त, अधिनियम में यह भी व्यवस्था है कि यदि कोई विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन के संबंध में किन्हीं विदेशी अथवा अवैध संस्थाओं से धन प्राप्त करता है, तो उसे सात से 14 वर्ष तक की कठोर कैद हो सकती है।
नेता प्रतिपक्ष का सुझाव
नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडेय ने एक धारा जोड़ने का सुझाव दिया, जिसमें यदि आरोपी को रिहा कर दिया जाता है, तो (झूठी) प्राथमिकी लिखने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ भी कार्रवाई होनी चाहिए।