धार्मिक स्वतंत्रता को दूसरों का धर्म परिवर्तन का अधिकार नहीं समझा जा सकता

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अवैध रूप से धर्मांतरण कराने के एक आरोपी को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा है कि संविधान नागरिकों को अपने धर्म को स्वतंत्र रूप से मानने, उसका पालन करने और उसका प्रचार करने का अधिकार देता है, लेकिन इसे ‘धर्मांतरण कराने’ या अन्य लोगों को अपने धर्म में परिवर्तित करने के ‘सामूहिक अधिकार के रूप में नहीं समझा जा सकता है।’ न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने यह आदेश पारित करते हुए आरोपी श्रीनिवास राव नायक की जमानत की अर्जी खारिज कर दी। याचिकाकर्ता नायक के खिलाफ उत्तर प्रदेश अवैध धर्म परिवर्तन निषेध कानून, 2021 की धारा 3/5 (1) के तहत मामला दर्ज किया गया था। अदालत ने कहा कि अंतरात्मा की आवाज पर धर्म अपनाने की स्वतंत्रता का अधिकार यह सुनिश्चित करता है कि हर व्यक्ति अपनी धार्मिक आस्थाओं को चुनने, उनका अनुसरण करने और उन्हें अभिव्यक्त करने के लिए स्वतंत्र है। हालांकि, अंतरात्मा और धर्म की स्वतंत्रता के व्यक्तिगत अधिकार को धर्मांतरण के सामूहिक अधिकार के रूप में नहीं समझा जा सकता। अदालत ने कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार धर्मांतरण करने वाले व्यक्ति और धर्मांतरित होने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति दोनों का समान रूप से है। आरोप है कि 15 फरवरी, 2024 को इस मामले के शिकायतकर्ता को विश्वनाथ के घर आमंत्रित किया गया जहां कई ग्रामीण एकत्रित थे।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने धर्मांतरण कराने के आरोपी को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा

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