सेबी ने छोटी, मझोली कंपनियों के लिए आइपीओ नियमों को किया सख्त

पूंजी बाजार नियामक सेबी के निदेशक मंडल ने छोटी एवं मझोली कंपनियों (एसएमई) के आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आइपीओ) लाने से संबंधित प्रक्रिया को सशक्त करने के लिए बुधवार को एक सख्त नियामकीय रूपरेखा को मंजूरी दी। इसके अलावा, सेबी ने बिक्री पेशकश (ओएफएस) को सीमित करने का फैसला किया है और प्रवर्तकों के लिए चरणबद्ध ‘लाक- इन’ पेश किया है।

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के निदेशक मंडल की यहां हुई बैठक में यह फैसला किया गया। सेबी ने इस बैठक में लिए गए फैसलों की जानकारी दी। बयान के मुताबिक, सेबी के निदेशक मंडल ने डिबेंचर ट्रस्टी, ईएसजी रेटिंग प्रदाताओं, इनविट्स, रीट्स और एसएम रीट्स के लिए कारोबारी सुगमता को बढ़ावा देने के लिए सुधारों को भी मंजूरी दी। इसके अलावा, अनुमोदित सुधारों का उद्देश्य एसएमई को एक अच्छा ट्रैक रिकार्ड प्रदान करना और निवेशकों के हितों की रक्षा करते हुए जनता से SE31 धन जुटाने का अवसर प्रदान करना है। इस संबंध में, बोर्ड ने सेबी (आइसीडीआर) विनियम, 2018 और सेबी (एलओडीआर) विनियम, 2015 में संशोधन को मंजूरी दे दी। यह कदम एसएमई के निर्गम बढ़ने के बाद उठाया गया है, जिसने महत्त्वपूर्ण निवेशक भागीदारी को बढ़ावा दिया है।

लाभप्रदता मानदंड के संबंध में, एसएमई इकाइयों की तरफ से लाए जाने वाले आइपीओ के संबंध में सेबी ने कहा कि निर्गम लाने की योजना बनाने वाली छोटी एवं मझोली कंपनियों को अपना मसविदा दस्तावेज (डीआरएचपी) दाखिल करते समय पिछले तीन में से दो वित्त वर्षों में कम से कम एक करोड़ रुपए का परिचालन लाभ (ब्याज, मूल्यह्रास और कर से पहले की कमाई यानी एबिटा) दिखाना होगा। एसएमई आइपीओ में शेयरधारकों द्वारा बिक्री के लिए बिक्री पेशकश (ओएफएस) की सीमा कुल निर्गम आकार के 20 फीसद तक सीमित कर दी गई है। इसके अलावा, विक्रय करने वाले शेयरधारक अपनी मौजूदा हिस्सेदारी का 50 फीसद से अधिक हिस्सा नहीं बेच सकेंगे।