उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह राज्यों और अन्य हितधारकों के साथ परामर्श कर महिला कर्मचारियों के लिए मासिक धर्म अवकाश पर एक माडल नीति तैयार करे। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि यह मुद्दा नीति से संबंधित है और अदालतों के विचार करने के लिए नहीं है। पीठ ने कहा कि इसके अलावा, महिलाओं को ऐसी छुट्टी देने के संबंध में अदालत का निर्णय प्रतिकूल और ‘हानिकारक’ साबित हो सकता है, क्योंकि नियोक्ता उन्हें काम पर रखने से परहेज कर सकते हैं। पीठ ने याचिकाकर्ता से सवाल किया कि इस तरह की छुट्टी अधिक महिलाओं को कार्यबल का हिस्सा बनने के लिए कैसे प्रोत्साहित करेगी। उसने कहा कि इस तरह की छुट्टी अनिवार्य करने से महिलाएं ‘कार्यबल से दूर हो जाएंगी।… हम ऐसा नहीं चाहते।’ पीठ ने कहा, ‘यह वास्तव में एक
सरकारी नीतिगत मुद्दा है अदालतों के विचार करने के लिए नहीं है।’ उसने कहा, ‘याचिकाकर्ता का कहना है कि मई 2023 में केंद्र को एक अभ्यावेदन सौंपा गया था। चूंकि, मुद्दा सरकारी नीति के विविध उद्देश्यों को उठाता है, इसलिए इस अदालत के पास हमारे पिछले आदेश के आलोक में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है।’
स्वच्छता उत्पादों के वितरण पर राष्ट्रीय नीति अंतिम चरण में : केंद्र
केंद्र सरकार ने सोमवार को उच्चतम न्यायालय को अवगत कराया कि स्कूल जाने वाली किशोरियों को मासिक धर्म स्वच्छता उत्पादों के वितरण पर राष्ट्रीय नीति तैयार करने का काम अंतिम चरण में है। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ ने केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सालिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी की दलीलों का संज्ञान लिया और संबंधित नीति तैयार करने के लिए दो महीने का समय देने का उनका अनुरोध स्वीकार कर लिया। शीर्ष अदालत कांग्रेस नेता एवं सामाजिक कार्यकर्ता जया ठाकुर की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी।