आम आदमी के सपनों को साकार करता है ये फिल्म ‘सरफिरा’

फिल्म: सरफिरा

निर्देशकः सुधा कोंगारा कलाकार: अक्षय कुमार, राधिका मदान, परेशा रावल, सीमा बिस्वास, आर शरतकुमार, इरावती हर्षे, प्रकाश बेलवाड़ी आदि

अवधिः 2 घंटे 35 मिनट

जॉनरः बायोग्राफी-ड्रामा

बायेपिक फिल्मों के इस दौर में में निर्देशक सुधा कोंगारा भी रियल लाइफ किरदार और इंसिडेंट पर आधारित फिल्म सिरफिरा के साथ प्रस्तुत हुई हैं। भारतीय सेना के पूर्व कैप्टन गोपीनाथ द्वारा काम वजट वाली एयरलाइन को खोलने की जिद और जज्बे से भरी इस कहानी के हीरो हैं अक्षय कुमार। पैडमैन, एयरलिफ्ट, रुस्तम, मिशन मंगल, केसरी, पृथ्वीराज, मिशन रानीगंज जैसी कई वायोपिक और सत्य घटनाओं से प्रेरित फिल्मों में चमकने वाले अक्षय कुमार अपनी दमदार परफॉर्मेस से इस प्रेरणादायक और इमोशनल कहानी को जीवंत कर ले जाते हैं। अक्षय की यह फिल्म तमिल सूराराई पोटरू की रीमेक है। कहानी की शुरुआत एक रोमांचक ढंग से होती है, जहां पर वीर म्हात्रे (3 (अक्षय कुमार) अपने दोस्त के साथ एक इमरजेंसी लेडिंग करवा कर विमान दुर्घटना को टालने से रोकता है, मगर उन्हें गिरफ्तार कर दिया जाता है। यहीं से कहानी फ्लैशबैक में जाती है, जहां वीर महाराष्ट्र के अंदरूनी गांव में स्कूल मास्टर का एक ऐसा बेटा है, जो हमेशा से क्रांतिकारी सोच रखता है। वह एयरफोर्स की जिम्मेदारी के बीच उसके पिता बीमारी में गुजर जाते हैं। वीर के दिल में यह वात फांस की तरह अटक जाती है कि वह महंगे एयर टिकट के कारण अपने पिता के अंतिम दर्शन नहीं कर पाया। वस यहीं से वह आम आदमी के लिए सस्ती एयरलाइन की शुरुआत करने का प्रण लेता है। मगर उसकी राह का सबसे बड़ा रोड़ा है एयरलाइन का खुरोट टाइकून परेश गोस्वामी (परेश रावल), जो उसे हर कदम पर गिराने की कोशिश करता है, मगर वीर की पत्नी रानी (राधिका मदान) उसे अपना अनकंडीशनल सपोर्ट देती है। निर्देशक सुधा कोंगरा की यह फिल्म समाज के अंडरडॉग की जीत की कहानी है।

सुधा की इस फिल्म का फर्स्ट हाफ कमाल तरीके से आगे बढ़ता है, जहां कहानी कई ट्विस्ट और टर्न के साथ आगे बढ़ती है। मगर सेकंड हाफ में कहानी की रफ्तार थोड़ी सुस्त होती है, मगर फिर क्लाइमैक्स आपको एक ऐसी उड़ान पर ले जाता है, जहां आप जज्वाती हुए विना नहीं रह पाते। सुधा की फिल्म वंचितों के सपनों को पूरा करने के साथ-साथ पितृसत्तामक सोच, वर्ग विभाजन और जातिवाद पर भी टिप्पणी करती है। हालांकि फ्लैश वैक का आना थोड़ा कन्फ्यूजिंग है। कैप्टन गोपीनाथ की किताव ‘सिंपली फ्लाई’ से प्रेरित इस फिल्म में सुधा व्यूरोक्रेसी के षड़यंड़ों को रोमांचक ढंग से दर्शाने में कामयाब रहती हैं। संगीत की वात करें, तो जीवी प्रकाश एयर कुमार संगीत को दमदार वना सकते थे। निकेथ वोमिरेड्डी की सिनेमैटोग्राफी रोमांच जगाती है, जबकि वैकग्राउंड म्यूजिक कहानी की गति को बनाए रखता है। एडिटिंग टेवल पर फिल्म को थोड़ा क्रिस्प किया जा सकता था।

अक्षय कुमार वीर म्हात्रे के रोल में हर तरह से खिले और खुले हैं। उनके किरदार में कई लेयर्स हैं और वे जोश, जुनून, वेवसी, आशा-निराशा, रोमांस जैसे तमाम इमोशंस को पर्दे पर ऐसे सशक्त ढंग से दर्शाते हैं कि दर्शक किरदार और कहानी में रम कर उसकी जीत की कामना करता है। रानी के रूप में राधिका मदान ने आश्चर्यजनक ढंग से बेहतरीन परफॉर्मेंस दी है। मराठी लैंग्वेज के लेहके के साथ तेज-तर्रार किरदार में वे दर्शकों का दिल जीत लेती हैं। उनकी और अक्षय की केमेस्ट्री फिल्म का प्लस पॉइंट है। एयरलाइन टाइकून परेश गोस्वामी के नकारात्मक किरदार को परेश रावल ने अपने खास अंदाज में जिया है, तो वहीं मां की भूमिका में सीमा विस्वास ने काविले-तारीफ काम किया है। प्रकाश वेलवाड़ी, अनिल मांगे, अनिल चटर्जी, इरावती हर्षे जैसे कलाकरों का अभिनय भी यादगार है।

 

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