नई दिल्ली।
बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर राजनीतिक हलकों में हलचल तेज हो गई है। चुनाव आयोग द्वारा 24 जून को जारी आदेश के खिलाफ राज्यसभा सांसद मनोज झा समेत कई नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। शीर्ष अदालत ने याचिकाओं पर सुनवाई के लिए सहमति जताते हुए चुनाव आयोग और केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है।
चुनाव आयोग ने अपने आदेश में कहा था कि बिहार में मतदाता सूचियों का विशेष गहन पुनरीक्षण किया जाएगा, जिसमें नए नाम जोड़े जाएंगे, मृत और स्थानांतरित मतदाताओं के नाम हटाए जाएंगे और सूची को अद्यतन किया जाएगा। आयोग का दावा है कि यह कदम राज्य में निष्पक्ष और पारदर्शी चुनावों को सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया है।
हालांकि, विपक्षी दलों का कहना है कि यह प्रक्रिया चयनात्मक और पक्षपातपूर्ण हो सकती है। उनका आरोप है कि विशेष वर्गों और समुदायों के मतदाताओं के नाम जानबूझकर सूची से हटाए जा सकते हैं, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया प्रभावित होगी।
राजद सांसद प्रो. मनोज झा ने याचिका में तर्क दिया कि यह आदेश संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन है। उन्होंने मांग की कि इस प्रक्रिया को या तो रोका जाए या पूर्ण पारदर्शिता के साथ संचालित किया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए याचिका पर विचार करने की बात कही है और सभी पक्षों से जवाब तलब किया है।
अब देखना यह है कि क्या शीर्ष अदालत चुनाव आयोग के आदेश पर रोक लगाती है या कोई निर्देश जारी करती है, क्योंकि इसका सीधा असर बिहार में होने वाले आगामी चुनावों पर पड़ सकता है।