पटना से रिपोर्ट: बिहार में चुनाव से पहले राजनीति का पारा चढ़ गया है। कांग्रेस नेता पवन खेड़ा और राजद के तेजस्वी यादव ने राज्य सरकार पर 70,000 करोड़ रुपये से भी अधिक के वित्तीय घोटाले का गंभीर आरोप लगाया है। इस आरोप की बुनियाद कैग (कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल) की हालिया रिपोर्ट है, जिसमें कहा गया है कि राज्य के कई विभागों ने अपनी परियोजनाओं के लिए जरूरी ‘उपयोगिता प्रमाण पत्र’ जमा नहीं किए। इसका मतलब है कि खर्च किए गए भारी पैसों का हिसाब-किताब गायब है।
कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा है कि यह रकम बिहार के सालाना बजट का करीब एक तिहाई है और अगर इस पर लगाम नहीं लगी, तो भविष्य में और बड़ा घोटाला हो सकता है। उन्होंने इसे लालू यादव के शासनकाल में सामने आए चारा घोटाले (903 करोड़ रुपये) से लगभग 70 गुना बड़ा बताया है।
राजद नेता तेजस्वी यादव ने भी जोर देकर कहा है कि यह सरकार की लापरवाही नहीं, बल्कि पैसे की चोरी है। उन्होंने विधानसभा में इस मुद्दे को उठाते हुए कहा कि जनता के पैसे का दुरुपयोग हो रहा है और सरकार जवाबदेह नहीं है।
दूसरी ओर, बिहार सरकार ने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा है कि यह केवल एक प्रक्रियागत देरी है। उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने बताया कि पिछले वर्षों में करोड़ों रुपये की उपयोगिता रिपोर्ट जमा की गई है और यह मामला ‘नॉर्मल अकाउंटिंग प्रक्रिया’ का हिस्सा है, न कि कोई भ्रष्टाचार।
घोटाले की संवेदनशील डिटेल्स:
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पंचायती राज विभाग में 28,154 करोड़ रुपये का उपयोगिता प्रमाण पत्र लंबित
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शिक्षा विभाग में 12,623 करोड़ रुपये का उपयोगिता प्रमाण पत्र लंबित
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शहरी विकास विभाग में 11,065 करोड़ रुपये का उपयोगिता प्रमाण पत्र लंबित
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ग्रामीण विकास विभाग में 7,800 करोड़ रुपये का उपयोगिता प्रमाण पत्र लंबित
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कृषि विभाग में 2,107 करोड़ रुपये का उपयोगिता प्रमाण पत्र लंबित
विशेषज्ञों का कहना है कि उपयोगिता प्रमाण पत्र न जमा होना सीधे तौर पर घोटाला साबित नहीं करता, लेकिन अगर जांच में दुरुपयोग पाया गया तो यह राज्य की छवि के लिए बहुत बड़ा झटका होगा।
यह मामला 2025 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले राजनीति के नए युद्ध का मोड़ बन गया है। जनता की निगाहें अब इस पूरे विवाद पर टिकी हैं, क्योंकि सरकारी धन के सही इस्तेमाल और पारदर्शिता से ही राज्य का विकास जुड़ा है।