राष्ट्रीय राजधानी की एक अदालत ने सोमवार को नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर को पांच महीने की साधारण कारावास की सजा को निलंबित कर दिया। यह सजा दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना के खिलाफ 23 साल पहले दायर मानहानि के मामले में दी गई थी। उस समय सक्सेना गुजरात में एक गैर सरकारी संगठन के प्रमुख थे।
सक्सेना के अधिवक्ता गजिंदर कुमार ने बताया कि पाटकर की अपील पर मेट्रोपालिटन मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने सजा को निलंबित कर दिया और उपराज्यपाल को नोटिस जारी किया। अदालत ने पाटकर को 25,000 रुपए की जमानत और इतनी ही राशि के मुचलके पर जमानत दी है। सक्सेना की ओर से वकील ने नोटिस प्राप्त कर लिया है।
अगली सुनवाई चार सितंबर को होगी और इससे पहले जवाब दाखिल करना होगा। एक जुलाई को अदालत ने पाटकर को जेल की सजा सुनाई थी। अदालत ने 24 मई को पाटकर को दोषी ठहराया था और कहा था कि सक्सेना को ‘कायर’ कहना और उन पर हवाला लेन-देन में शामिल होने का आरोप लगाना मानहानिकारक है और इससे उनके खिलाफ नकारात्मक धारणा बनती है। अदालत ने यह भी कहा कि शिकायतकर्ता पर आरोप कि वह गुजरात के संसाधनों को विदेशी हितों के लिए गिरवी रख रहा है, उनकी ईमानदारी और सार्वजनिक सेवा पर हमला है।
पाटकर और सक्सेना के बीच कानूनी विवाद 2000 से चल रहा है। तब पाटकर ने सक्सेना और नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) के खिलाफ विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए मुकदमा दायर किया था। सक्सेना ने 2001 में पाटकर के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने और मानहानिकारक प्रेस विज्ञप्ति जारी करने के लिए दो मामले दायर किए थे। उस समय सक्सेना अहमदाबाद स्थित ‘काउंसिल फार सिविल लिबर्टीज’ नामक एक गैर सरकारी संगठन के प्रमुख थे।