शेख मुजीबुर रहमान की तरह ही 50 साल बाद बांग्लादेश में फिर से वही गलती कर गईं बेटी शेख हसीना

Like Sheikh Mujiburahman, 50 years later, daughter Sheikh Hasina made the same mistake again in Bangladesh
Like Sheikh Mujiburahman, 50 years later, daughter Sheikh Hasina made the same mistake again in Bangladesh

बांग्लादेश में भारी हिंसा के बाद आखिरकार शेख हसीना को न सिर्फ प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा बल्कि देश तक छोड़कर भागना पड़ा। लेकिन इसके लिए आरक्षण ही एक मात्र कारण नहीं था। पाकिस्तान के एक प्रसिद्ध शायर का एक शेर याद आता है- ‘कुछ तो शहर के लोग भी जालिम थे, कुछ हमको मरने का शौक भी था।’

यानि, कुछ तो शेख हसीना की खुद की गलतियां थीं और कुछ लोग भी जालिम थे। दरअसल, हसीना सरकार को अस्थिर करने का कुछ प्रयास अमेरिकियों और बाकी बाहरी शक्तियों ने भी किया। इसके साथ ही, अमेरिकियों के दोहरे मापदंड भी सामने आए।

हालांकि, असल में वे बांग्लादेश में क्या चाहते थे यह स्पष्ट नहीं है। शेख हसीना ने काफी हद तक इस्लामिक कट्टरपंथियों पर नियंत्रण रखा था। जिन लोगों का समर्थन अमेरिका करते हुए नजर आ रहा है, वे इस्लामिक कट्टरपंथ से जुड़े जमात-ए-इस्लामी और बीएनपी वाले हैं।

पिता की तरह बेटी की वही गलती

दूसरा पहलू यह है कि जिस तरह की राजनीति बांग्लादेश में चल रही थी, उसमें विपक्षी दलों के लिए किसी तरह की कोई जगह नहीं बची थी। यही गलती कहीं न कहीं आज से पचास साल पहले उनके पिता शेख मुजीबुर्रहमान ने भी की थी, जब उन्होंने बांग्लादेश में सिंगल पार्टी वाला एक निजाम शुरू किया था।

लोगों का गुस्सा यूं ही नहीं फूटा। शेख हसीना की बड़ी सफलता यह थी कि जब वे सरकार में बैठ गईं, तब वे जमीन की हलचल को महसूस नहीं कर पाईं। इसके बाद जब भूचाल आया, तो उनका तख्ता पलट हो गया।

वोट के जरिए बदलाव की उम्मीद

भारत में, चुनावों ने दिखाया कि लोकतंत्र से समाधान निकाले जा सकते हैं। आप वोट के जरिए सरकारों को बता सकते हैं कि क्या आपके लिए स्वीकार्य है और क्या नहीं। अगर आप किसी को दबाकर रखेंगे, तो किसी न किसी वक्त प्रतिक्रिया आएगी। बांग्लादेश में भी कुछ यही हुआ।

लोगों का गुस्सा सिर्फ आरक्षण नहीं

बांग्लादेश में शेख हसीना के खिलाफ गुस्से की वजह सिर्फ आरक्षण नहीं हो सकता है बल्कि उसमें कई फैक्टर शामिल हैं। इस्लामिक कट्टरपंथी, शेख हसीना के विरोधियों की चाल, और विदेशी ताकतें भी इसमें शामिल थीं। अगर प्रशासन इसको नहीं संभाल पाता है और आपकी राजनीति उसको संभालने में सक्षम नहीं है तो फिर वही होता है जो हमारे सामने हुआ।

अरब क्रांति से तुलना

जैसे अरब क्रांति में गुस्सा फूटा था, वैसे ही बांग्लादेश में हुआ। एक मामूली घटना ट्रिगर बन गई और उबाल आ गया।

भविष्य की चुनौतियाँ

बांग्लादेश का भविष्य अब अनिश्चित है। राजनीतिक अस्थिरता के साथ आर्थिक समस्याएं भी बढ़ेंगी। भारत के लिए भी यह एक चुनौती है। बांग्लादेश की स्थिति से भारत को सावधान रहना होगा, ताकि कोई अस्थिरता यहां न फैले।

भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती

भारत सरकार की अब सबसे बड़ी चुनौती यह है कि भारत को महफूज कैसे रखा जाए। अगर भारत में अस्थिरता नहीं होती है, तो बाकी चीजें भी ठीक हो जाएंगी। लेकिन अगर भारत किसी बाहरी संघर्ष में उलझता है या अस्थिरता आती है, तो आर्थिक विकास भी प्रभावित होगा।


इस प्रकार, बांग्लादेश की वर्तमान स्थिति शेख हसीना की गलतियों और बाहरी हस्तक्षेप का परिणाम है। भविष्य में स्थिरता और सुरक्षा बनाए रखने के लिए बांग्लादेश और उसके पड़ोसी देशों को मिलकर काम करना होगा।

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