बांग्लादेश के जेशोरेश्वरी मंदिर से मां काली का मुकुट चोरी, पीएम मोदी द्वारा चढ़ाया गया मुकुट गायब, CCTV फुटेज वायरल

बांग्लादेश के प्रसिद्ध जेशोरेश्वरी काली मंदिर से मां काली का सोने की परत चढ़ा हुआ चांदी का मुकुट चोरी हो गया है। यह वही मुकुट है जिसे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2021 में अपने बांग्लादेश दौरे के दौरान मंदिर में चढ़ाया था। घटना का CCTV फुटेज शुक्रवार को सामने आया, जिसमें चोर को मुकुट लेकर भागते हुए देखा गया है।

मुकुट चढ़ाने का इतिहास

प्रधानमंत्री मोदी 2021 में अपने बांग्लादेश दौरे के दौरान जेशोरेश्वरी मंदिर गए थे, जो उनकी कोविड-19 महामारी के बाद की पहली विदेश यात्रा थी। उन्होंने वहां मां काली की पूजा की थी और यह मुकुट मंदिर में चढ़ाया था। इस घटना ने तब से मंदिर को विशेष धार्मिक महत्व दिलाया है।

चोरी की घटना और फुटेज

CCTV फुटेज में एक संदिग्ध व्यक्ति को मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करते और मुकुट चुराते हुए देखा गया है। वह टी-शर्ट और जींस पहने हुए था, और चोरी के बाद उसने मुकुट को अपनी टी-शर्ट के अंदर छिपा लिया। चोरी की यह घटना गुरुवार दोपहर करीब 2 से 2:30 बजे के बीच हुई, जब मंदिर का दरवाजा गलती से खुला रह गया था।

मंदिर की महिला सेवादार, रेखा सरकार ने बताया, “दोपहर में प्रसाद वितरण के बाद मैं पूजा के बर्तन धोने गई थी, तभी चोरी हो गई। जब मैं वापस आई, तो देवी के सिर से मुकुट गायब था।”

भारतीय उच्चायोग की प्रतिक्रिया

चोरी की इस घटना पर भारत ने अपनी चिंता जाहिर की है। ढाका स्थित भारतीय उच्चायोग ने इस पर कड़ी कार्रवाई की मांग की है। बांग्लादेश पुलिस ने जांच शुरू कर दी है और CCTV फुटेज के आधार पर संदिग्ध की पहचान करने का प्रयास कर रही है। श्यामनगर पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर तैजुल इस्लाम ने कहा कि जांच जारी है और जल्द ही आरोपी को गिरफ्तार करने की कोशिश की जा रही है।

जेशोरेश्वरी मंदिर का महत्व

जेशोरेश्वरी काली मंदिर हिंदू धर्म के 51 शक्ति पीठों में से एक है, जहां माता सती की बाईं हथेली गिरी थी। यह मंदिर बांग्लादेश के जेस्सोर जिले में स्थित है और इसे हिंदू भक्तों के लिए एक पवित्र स्थल माना जाता है। यहां श्रद्धालु देवी से आशीर्वाद प्राप्त करने और भय व रोग से मुक्ति की कामना करते हैं।

मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में एक ब्राह्मण, अनारी ने कराया था, और इसका पुनर्निर्माण 13वीं शताब्दी में लक्ष्मण सेन तथा 16वीं शताब्दी में राजा प्रतापदित्य द्वारा किया गया था।

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