पेरिस ओलंपिक में भारतीय दल का प्रदर्शन मिला-जुला रहा। सात पदकों की टोक्यो ओलंपिक की ऐतिहासिक उपलब्धि को पीछे छोड़ने की उम्मीदें थीं, लेकिन इस बार भारत को सिर्फ छह पदक मिले – एक रजत और पांच कांस्य। हालांकि, प्रदर्शन में सुधार जरूर दिखा, लेकिन सोने का तमगा हासिल करने में नाकाम रहे।
117 खिलाड़ियों के साथ अब तक के सबसे बड़े दल ने पेरिस की ओर रुख किया था, और उम्मीद थी कि इस बार भारत पहली बार पदकों की दो अंकों वाली संख्या को छू सकेगा। शुरुआत अच्छी रही, जब मनु भाकर ने प्रतियोगिता के दूसरे दिन महिलाओं की 10 मीटर एयर पिस्टल में कांस्य पदक जीता। इसके दो दिन बाद, मनु ने सरबजीत सिंह के साथ मिलकर मिक्स्ड टीम 10 मीटर एयर पिस्टल में एक और कांस्य पदक जीतकर इतिहास रच दिया।
लेकिन इसके बाद अगले सात दिनों तक भारत पदक हासिल करने में असफल रहा, जिससे दो अंकों की संख्या तक पहुंचने की उम्मीदें धूमिल होती गईं।
पेरिस ओलंपिक के अंतिम दिनों में भारतीय खिलाड़ियों से उम्मीदें लगी रहीं। नीरज चोपड़ा, मीराबाई चानू, और पहलवान विनेश फोगाट पर सभी की नजरें थीं। विनेश ने फाइनल में पहुंचकर एक पदक पक्का किया था, लेकिन 100 ग्राम वजन अधिक होने के कारण उन्हें अयोग्य करार दिया गया। यह देश के लिए एक बड़ा झटका साबित हुआ।
भारतीय हॉकी टीम ने सेमीफाइनल में हार का सामना किया, लेकिन कांस्य पदक मैच में उन्होंने स्पेन को हराकर लगातार दूसरा कांस्य पदक जीता। नीरज चोपड़ा, जो स्वर्ण पदक के सबसे बड़े दावेदार माने जा रहे थे, उन्होंने भी बेहतरीन प्रयास किया, लेकिन पाकिस्तान के अरशद नदीम के 92.97 मीटर के ओलंपिक रिकॉर्ड के सामने उन्हें रजत पदक से संतोष करना पड़ा।
भारत के पहले व्यक्तिगत स्वर्ण पदक विजेता अभिनव बिंद्रा ने भारतीय दल की सराहना की और कहा कि हमारे खिलाड़ी विभिन्न खेलों में बेहद प्रतिस्पर्धात्मक रहे। “हमने जितने पदक जीते हैं, उससे कहीं अधिक हमारे खिलाड़ियों ने बेहतरीन प्रदर्शन किया है। यह कहना गलत नहीं होगा कि हम पदकों की संख्या के मामले में पिछड़ गए, लेकिन खेल के स्तर में हम कहीं आगे बढ़े हैं,” बिंद्रा ने कहा।
पेरिस ओलंपिक का सफर भारत के लिए चुनौतीपूर्ण और भावनात्मक रहा। छह पदक – एक रजत और पांच कांस्य, लेकिन क्या यह भारत की प्रगति का संकेत है या हमें और मेहनत की जरूरत है? यह सवाल अब देश के खेल प्रेमियों और प्रशासन के सामने है।